४ पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – का जीवन में महत्त्व!

आँधियाँ भी आयेंगी, तूफ़ाँ भी आयेंगे।
मंज़िल बड़ी कठिन है, कदम लड़खड़ायेंगे।।
हों मुश्किलें हजार,रूकना नहीं कहीं ।
बन आदिदूत धर्म का परचम फहरायेंगे।।
संसार में रहते हुए भी जब मनुष्य के अंदर संसार ना रहे तो इसी अवस्था को मोक्ष कहते हैं।
हमारे सनातन धर्म में मनुष्य के लिये चार कर्म बताये गये हैं।धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसमें मोक्ष को प्रमुख कर्म कहा गया है। लेकिन वेदों और सनातन शास्त्रों महान संतों के उपदेशों हिन्दु ग्रंथों को जो समझते है उनके अनुसार मोक्ष कर्म नहीं है। बल्कि मोक्ष कर्म का परिणाम है। यदि सनातन में बताये गए तीनों कर्मों धर्म,काम और अर्थ का पालन मानवता के हित में करते हुए व्यक्ति जीवन भर चल पाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धर्म क्या है
जीवन का पहला प्रमुख कर्म धर्म है।धर्म का मुख्य अर्थ जीवन के मूलभूत सिद्धांतो से है। वो सामाजिक मान्यतायें और धारणायें जो व्यक्ति को पशु से मनुष्य बनाती हैं,वही धर्म है। सनातन धर्म का मूल स्वरूप ही मानवता के हित में निहित है। मानवता का मतलब केवल मनुष्य के कल्याण तक सीमित नहीं है। मानवता का मतलब सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण में निहित है। जो मानवता के सिद्धांतो पर चलता है वही धर्म के मार्ग पर चलता है।
धर्म प्रेम है, धर्म त्याग है, धर्म दया है, धर्म क्षमा है, धर्म अनुसाशन है। वेदों का अनुसरण ही धर्म है। सनातन में समस्त सृष्टि का कल्याण ही धर्म है। सरलता और करुणा का भाव धर्म है। धर्म आपस में बांटता नहीं बल्कि सबको एक बनाता है। वेदों के अनुसार धर्म मानव जीवन का प्रथम कर्म है। व्यक्ति को जीवनपर्यन्त धर्म का अनुसरण करना चाहिए।
काम क्या है
अर्थ क्या है
हमारा जीवन एक भवन की तरह है जिसकी नींव धर्म और शिखर मोक्ष है इसके बीच जो है वह अर्थ और काम है।
भवन की नींव अगर मज़बूत नहीं होगी तो भवन कमजोर ही रहेगा कमजोर नींव का भवन देखने बहुत सुन्दर और आकर्षक हो सकता है लेकिन सुरक्षित नहीं हो सकता,बिल्कुल इसी तरह हमारे जीवन रूपी भवन की नींव धर्म है यदि हमारी धर्म में निष्ठा नहीं होगी तो जीवन रूपी भवन कभी मज़बूत और सुन्दर नहीं हो सकता।यदि हमें अपने जीवन को सफल और हितकारी बनाना है तो हमें अपने जीवन की धर्म रूपी नींव को मज़बूत बनाना होगा तभी हम जीवन के मोक्ष रूपी शिखर को पा सकते हैं।
धर्म का उद्देश्य मोक्ष है,अर्थ नहीं। धर्म के अनुसार आचरण मोक्ष लिये हो अर्थ के लिये नहीं। अर्थ से धन कमाना है ना कि धर्म से अर्थ कमाना है।
धर्म यह नहीं कहता कि अर्थ मत कमाओ लेकिन कमाये गये अर्थ में से कुछ हिस्सा धर्म के कार्यों में लगाओ।
हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके पास अच्छे कपड़े, मंहगे आभूषण, रहने के लिये बड़ा और सुन्दर मकान हो बड़ी सी कार हो, दुनियाँ भर के वह सारे संसाधन हों जो जीवन के लिये ज़रूरी हैं। यह सब होना चाहिये क्योंकि मन की आधी शान्ति इन्हीं कारकों से मिलती हैं। यदि मन शांत नहीं होगा तो धर्म में भी रूचि नहीं होगी।लेकिन यह भी ज़रूरी है कि अपने जीवन को इसी में उलझा कर नष्ट कर लिया जाये।
केवल अपनी कामनाओं को पूरा करने के लिये ही धन नहीं कमाना है,हमें दान करना चाहिये ताकि दूसरों के जीवन में भी थोड़ी ख़ुशियाँ आ जायें।दान मनुष्य को परमार्थ की और ले जाता है और परमार्थ मोक्ष की ओर से जाता है।धन कमाने के लिये काम करके जीवन को चलायमान रखना का उद्देश्य ही काम है।केवल इंद्रियों को तृप्त करना काम नहीं है।काम का उद्देश्य जीवन चलाना है रोटी कपड़ा और मकान ये जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं इनके बिना मनुष्य के मन को स्थिरता नहीं मिलती और जब मन स्थिर नहीं होगा तो धर्म के कार्यों में रूचि नहीं बन पायेगा।काम जीवन की आवश्यकता है जिससे जीवन चलता रहे और वंश परम्परा भी चलती रहे।
धर्म, अर्थ, काम इन तीनों को त्रिवर्ग की संज्ञा गयी है। हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि इन तीनों का समान रूप से पालन करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।मोक्ष प्राप्ति के लिये ज़रूरी नहीं कि संत ही बना जाये, ग्रहस्थ जीवन में रहकर इस त्रिवर्ग का समान रूप से पालन करते हुए भी मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।काम करो धन कमाओ जो धन जीवन यापन की आवश्यकताओं से बचें उसे धर्म के कार्यों में लगाओ तो ज़रूर मोक्ष की प्राप्ति होगी।धर्म का पालन करते हुये धन कमाना काम के पुरुषार्थ के बल देता है।धन कमाये लेकिन अनर्थ से बचें।धन के पीछे भागते हुए यदि धर्म को भल जायेंगे तो काम का पुरुषार्थ निष्फल ही रहेगा। धर्म को समझें, धन कमायें, धर्म के नियंत्रण में रहे ना कि धन के नियंत्रण में रहें।धर्म हमें नीतिपरक न्याय सहित जीने की रास्ता दिखाता है।धन जीवन के निर्वाह का साधन है साध्य नहीं साधन को साध्य बनाने से जीवन भर शान्ति का बोध नहीं हो सकता। साध्य तो केवल परामात्मा ही है।
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आदि दूत

सनातन ही अनन्त है, सनातन ही अनादि है। सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन के बाद कुछ नहीं रहेगा। आप लोग सोचेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि इसके पीछे कुछ कारण हैं। सनातन सृष्टि के सृजन की मूल है।सनातन कोई धर्म नहीं है

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