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सनातन का माहात्म्य

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥

मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मरा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

सनातन की विशिष्टता यही है कि सनातन पाँचों इंद्रियों को जोड़ता है।सनातन संसार की वो धरोहर हैं जिसमें मानव जाति का कल्याण निहित है वह सनातन जिसमें मनुष्य को मनुष्य से प्रेम करना सिखाया जाता है। वह सनातन जो समस्त प्राणियों के कल्याण के लिये मनुष्य के हृदय को कोमल बनाता है वह सनातन जो पूरे संसार में सदैव था सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन आत्मा का ही दूसरा रूप है लेकिन सनातन के प्रति हमारी अनभिज्ञता और सनातन के प्रति हमारी उदासीनता ने सनातन को जितना नुक़सान पहुँचाया है उतना किसी भी धर्म के उदय से नहीं हुआ। हम सनातन को पूरा नहीं जान पाये हम सनातन से दूर होते चले गये क्योंकि हमारे सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में है और संस्कृत को शिक्षा से हटा दिया हमारे ग्रंथों को या तो मिटा दिया गया या आमजन की पहुँच से दूर कर दिया।किसी संत या किसी धर्म प्रचारक ने सनातन ग्रंथों को सरल भाषा में अनुवाद कर प्रसार नहीं किया अपितु धर्म को धन कमाने का साधन बना लिया।

सं गच्छध्वम् सं वदध्वम्।।

आओ साथ चलें मिलकर बोलें। उसी सनातन मार्ग का अनुसरण करो जिस पर पूर्वज चले हैं।

जिस तरह आत्मा अजर और अमर है, बिल्कुल उसी तरह सनातन भी अजर और अमर है, सनातन संसार की उत्पत्ति के साथ आया है और जब तक यह संसार रहेगा सनातन अजर और अमर रहेगा, सनातन का मतलब ही कभी ना समाप्त होने वाला निरंतर चलने वाला है। सनातन किसी व्यक्ति द्वारा निर्मित कोई संस्था या धर्म नहीं है अपितु सनातन ईश्वर द्वारा दी गयी वह व्यवस्था है जिसमें मानव मूल्यों, मनुष्य की स्वतंत्रता, जीवन यापन के मूल सिद्धांत, भगवान की पूजा पद्धति सब निहित है।

सनातन कहता है कि पशु,पक्षी,पेड,पौधे,नदी,सागर सबमें ईश्वर है जो उग रहा है जो चल रहा है जो बह रहा है उन सबमें वह ईश्वर है जो मनुष्य में है , इसीलिए सनातन में वक्षों को पूजा जाता है नदियों को पूजनीय माना जाता यहाँ तक कि पशु पक्षियों सबको ईश्वर का अंश मान कर पूजा जाता है, यह केवल सनातन में ही हो सकता है क्योंकि सनातन मनुष्य को नियमों में नहीं बांधता, आप पत्थर को भगवान मानकर पूजें किसी वृक्ष को भगवान मान कर पूजें किसी नदी को देवी मानकर पूजे, आप पूज सकते हैं।

सनातन में आत्मा ब्रह्म माना गया है और जिसमें जीवन है उसमें आत्मा है और जिसमें आत्मा है उसमें ब्रह्म है और ब्रह्म ही ईश्वर है।

सनातन संसार का मूल स्वभाव है,जबकि धर्म किसी एक व्यक्ति का स्वभाव और सोच है।

सनातन में ग्रंथ,वेद आदि सिर्फ़ किताब नही बल्कि अतीत को देखकर भविष्य में मानव जीवन श्रेष्ठतम बनने के लिये ईश्वर द्वारा दिया गया एक दर्पण हैं

सनातन किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन में रूकावट पैदा नही करता अपितु मनुष्य स्वतंत्र होकर जीवन जीने की शिक्षा देती है

सनातन सबसे प्रचीन,श्रेष्ठ व्यवस्था है,जिसके हर नीति,नियम मे मानव कल्याण का रहस्य छूपा है

सनातन किसी एक व्यक्ति विशेष का विचार नही बल्कि यह अनेको ऋषियों मुनियों के ज्ञान,विज्ञान व अध्यात्म द्वारा अर्जित किया गया है।

सनातन किसी एक धर्म की सीमा में बंधा हुआ नहीं है,यह संसार के किसी सीमित भूभाग के साथ विशेष रूप से बँधा हुआ नहीं है जिसे हम हिन्दू धर्म कहते है।वह वास्तव में यही सनातन है क्योंकि यही विश्व व्यापी धर्म है, जो दूसरे सभी धर्मों का आलिंगन करता है।”

यहूदी ,बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम सभी इस धर्म की शाखायें हैं जो इसी से निकल कर किसी व्यक्ति द्वारा बनाई गयी हैं जिनमें मानव निर्मित नियम क़ानून बनाये गये। मानव निर्मित नियम क़ानून मनुष्य को बाँटते हैं जबकि सनातन में मनुष्यत्व को एक साथ जोड़ा जाता है।सनातन प्रेम भाव का प्रसार करता है।

आदिकाल से चले आ रहे ईश्वर के द्वारा संसार को दी गयी मानव कल्याण की व्यवस्था को सनातन कहा गया है।सनातन संसार और ईश्वर को अनादि और अनंत मानता है।सनातन यह मानता है कि उनके धर्म, शिक्षा, उपदेशों और अवतारों का कोई आदि-अंत नहीं है।उनका धर्म किसी पैगंबर या अवतार द्वारा संचालित व संस्थापित तथा प्रवर्तित न होकर प्रकृति(ईश्वर) के अनूठे और शाश्वत नियमों से नियंत्रित व संचालित है।ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव, श्री राम व कृष्ण के अवतार लेने से पहले से ही सनातन धर्म इस संसार में था।अर्थात सनातन का आदि-अंत नहीं है।सनातन का अर्थ है-सदाभव, नित्य और निश्छल!अर्थात जो सदा रहे ,नित्य रहे और जिसका कभी नाश न हो।यही स्थिति सनातन की भी रही है।

सभी धर्मों का उपसंहार लिखा जा चुका है सभी धर्मों के अनुसार अब कोई दूसरा ऐसा जन्म नहीं ले सकता जो उनके पूजनीय से बड़ा हो और यही धर्म कि हानि का कारण बनाता है। धर्म एक अंतराल में बाद मिट जाता है और सनातन निरंतर बना रहता है।

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आदि दूत

सनातन ही अनन्त है, सनातन ही अनादि है। सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन के बाद कुछ नहीं रहेगा। आप लोग सोचेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि इसके पीछे कुछ कारण हैं। सनातन सृष्टि के सृजन की मूल है।सनातन कोई धर्म नहीं है

This Post Has 3 Comments

  1. सन्तोष कुमार

    जय श्री राम

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