सत्य की खोज

मैं सत्य को ढूँढ रहा था,
बहुत लोगों से बात की,
बहुत किताबें पढ़ीं
तब पूरे एक वर्ष बाद शंकराचार्य द्वारा दी गयी सत्य की परिभाषा पढ़ने को मिली।
शंकराचार्य ने कहा था कि
“सत्य सदा था, सदा है, सदा रहेगा।”
मैंने इसी को आधार मानकर सत्य को खोजना शुरू किया, सत्य को ढूँढने के लिये मैं यहाँ वहाँ इसमें उसमें हर दम प्रयास करता करता रहा, अंत में यही पाया कि सत्य को कभी सामने नहीं आने दिया जाता क्योंकि सत्य को आजकल का सभ्य समाज ना सुन सकता है ना बोल सकता है, सत्य हर मनुष्य के मन की अँधेर कोठरी में छिपा रहता है क्योंकि सत्य एक नहीं है सबका सत्य अलग-अलग है।
आपका सत्य मेरे लिये झूँठ मेरा सत्य आपके लिये झूँठ हो सकता है ।
सत्य हमेशा बदलता रहता है या यूँ कहें कि सत्य पर बहुत परतें चढ़ी होती है।आप जैसे जैसे सत्य से परत हटायेंगे आपको सत्य का रूप बदलता दिखाई देगा और मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये सत्य की परिभाषा अपने अनुरूप बना लेता है।
सही मायनों में सत्य को खोजना एक मूर्खता भरा प्रयास है , सत्य स्वयं हमारे अंदर होता है जिसे हम बाहर लाने से डरते हैं कि कहीं कोई हमारी सत्यता जान ना ले।
सत्य कोई शब्द नहीं
सत्य कोई भाषा नहीं
भाषा तो सिर्फ़ संदेश आदान प्रदान का माध्यम है।
मनुष्य सत्य का निर्माण नहीं कर सकता।
सत्य एक खोज है सत्य को ना बनाया जा सकता है ना सत्य को प्रमाणित किया जा सकता है।
जो सदा था, सदा है और सदा रहेगा वहीं सत्य है।

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आदि दूत

सनातन ही अनन्त है, सनातन ही अनादि है। सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन के बाद कुछ नहीं रहेगा। आप लोग सोचेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि इसके पीछे कुछ कारण हैं। सनातन सृष्टि के सृजन की मूल है।सनातन कोई धर्म नहीं है

This Post Has One Comment

  1. Anjan

    Nice thou6

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