शंकर से कैसे बने शंकराचार्य

शंकर से कैसे बने आदि शंकराचार्य
जब शंकर का जन्म हुआ उस समय तक बौद्ध धर्म 1351 वर्ष पुराना हो चुका था जो पूरे एशिया में फैला हुआ था। जगह जगह बुद्ध आश्रम थे। वहाँ केवल भिक्षु लोग ही रहते थे।शंकराचार्य से पहले उनके गुरू गोविंद पाद और गोविंद पाद के गुरू गौडपाद ने बुद्ध धर्म के प्रसार को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उतने सफल नहीं हुये जितने सफल शंकराचार्य हुए।

शंकर बालक ने जब गौतम बुद्ध के उपदेशों को बारीकी से पढ़ा और समझा तब उन्हें गौतम बुद्ध द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने से संसार को होने वाली हानि का ज्ञान हुआ। गौतम बुद्ध के तीन संदेश सृष्टि के विरोध में थे जो सृष्टि के विस्तार में बाधक थे।गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में इन तीन मतों पर बहुत बल दिया था
जिनमें

किसी भी प्रकार की संपत्ति ना रखना।
सुखद बिस्तर पर ना सोना
महिलाओं से दूर रहना

इनमें सबसे ज़्यादा आपत्ति जनक संदेश महिलाओं से दूर रहना था। वेदों के अनुसार स्त्री ही सृष्टि है और स्त्री के बिना सृष्टि का विकास असंभव है। स्त्री के बिना प्रजनन प्रक्रिया असंभव है।जब पृथ्वी पर मनुष्य नहीं होगा तो सृष्टि का महत्व ही क्या रहेगा। शंकराचार्य ने सृष्टि में स्त्री के इस महत्व को समझा कि ईश्वर ने पुरुष को क्षमता दी है लेकिन सृजन का अधिकार केवल स्त्री को दिया है। जिसका उपयोग अगर ईश्वर प्रदत्त महान गुणों के साथ किया जाए, तो सृष्टि को स्वर्ग बनाया जा सकता है। स्त्री का अधिकार और कर्तव्य मात्र जीवन सृजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि स्त्री से ही सृष्टि के निर्माण का आरंभ होता है।

गौतमबुद्ध ना आत्मा को मानते थे ना परमात्मा को ।गौतम बुद्ध मानते थे कि जो भी इन सबका पालन करेगा उसको मोक्ष प्राप्ति होगी।गौतम बुद्ध के उपदेशों में घर बार त्याग कर भीख माँग कर खाओ कर्म कुछ मत करो गौतमबुद्ध ने भिक्षा को सबसे बड़ा कर्म बना दिया।

दूसरा किसी भी प्रकार की संपत्ति ना रखना यह भी आपत्ति का विषय है किसी भी समाज को चलना और उसका विकास करना सम्पत्ति के बिना नहीं हो सकता। तीसरा सुखद बिस्तर पर ना सोना। गौतमबुद्ध भिक्षु थे वो सारा दिन कोई कार्य नहीं करते थे भीख माँग कर पेट पालते थे लेकिन जो व्यक्ति सुबह से शाम तक मेहनत करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करेगा तो उसे आराम की ज़रूरत होगी वह आराम नहीं करेगा तो काम कैसे करेगा काम नहीं करेगा तो परिवार का भरण पोषण कैसे करेगा। भिक्षा कोई ज़्यादा समय तक नहीं दे सकता और जब सब भिखारी बन जायेंगे तो भीख कौन देगा।
शंकराचार्य ने अपने उपदेशों में धन अर्जित करने को ग़लत नहीं बताया। शंकराचार्य ने बताया कि धन अर्जित करो और कुछ धन बचाकर धर्म के कार्यों में लगाओ।बिना धन के धर्म को बनाये रखना असंभव है।

तीसरा गौतम बुद्ध के उपदेशों ने मनुष्य को आलसी बनाया कर्म से दूर किया भीख माँगने की प्रवृत्ति को बढ़ाया। मनुष्य को पौरुष को समाप्त कर कायर बनाया।
शंकराचार्य ने अपने उपदेशों में बताया कि मनुष्य को ईश्वर ने किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये पृथ्वी पर भेजा है। कायर और कमजोर पुरूष स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते तो धर्म की क्या रक्षा करेगे। सृष्टि में मनुष्य को मनुष्य से लड़ने के लिये ही बलशाली होने की ज़रूरत नहीं बल्कि पृथ्वी पर मौजूद अन्य प्राणियों से स्वयं की रक्षा करने के लिये भी बलशाली होनी चाहिये।

शंकराचार्य ने काम और धन को धर्म से जोड़कर मोक्ष का रास्ता दिखाया।

7

आदि दूत

सनातन ही अनन्त है, सनातन ही अनादि है। सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन के बाद कुछ नहीं रहेगा। आप लोग सोचेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि इसके पीछे कुछ कारण हैं। सनातन सृष्टि के सृजन की मूल है।सनातन कोई धर्म नहीं है

Leave a Reply