आओ मिलकर साथ चलो ये जाति भेद मिटाना है।
हो मज़बूत सनातन अपना ऐसा देश बनाना है ।
ना कोई ब्राह्मण ना कोई क्षत्री ना कोई वैश्य शूद्र बने
जिसने ये संसार रचा है सब उसकी संतान बने।
जन जन में जो भरे चेतना वह ब्राह्मण कहलाता है
करें सनातन की जो रक्षा वह क्षत्री बन जाता है।
धन-धान्य से सेवा करना वैश्य धर्म बन जाता है
मानव सेवा करने से कोई शूद्र नहीं बन जाता है।
है महान वो सेवक जिसने सेवा धर्म निभाया है
फिर क्यों उसको शूद्र कहें वो भी ईश्वर का ज़ाया है
वहीं सनातन जिसमें सब कर्मों का लेखा जोखा है।
भेद मिटा दो ऊँच नींच का ये सब केवल धोखा है
ना कोई ऊँचा ना कोई नीचा एक है हम सब जो भी है
जात पात में बाँटने वाले सब सत्ता के लोभी है
दीप से दीप जलाते चलना नाम अमर कर जाओगे
शंकर से तुम बनो आचार्य शंकराचार्य बन जाओगे
धर्म का परचम फहराने की आस हृदय में लाये है
दीप सनातन का लेकर के आदिदूत फिर आये हैं
आदिदूत ने बाती बन जलने की उसमें ठानी है
बन जाओ तुम तेल दीप में फिर से अलख जगानी है।
बहुत ही सुन्दर एवं सत्य कथन
Good work