वसुधैव कुटुम्कम्
शहरों में ऊँची ऊँची इमारतें, उनमें रहते लोग, सब एक दूसरे से अंजान। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं सब अपनी अपनी दिनचर्या में व्यस्त होते हैं।सुबह सुबह लोग…
शहरों में ऊँची ऊँची इमारतें, उनमें रहते लोग, सब एक दूसरे से अंजान। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं सब अपनी अपनी दिनचर्या में व्यस्त होते हैं।सुबह सुबह लोग…
जब हमें लगता है कि अब कोई उम्मीद नहीं बची है और दुनियाँ एक धुँधली जगह बनती जा रही है तब सभी रास्ते हमें एक ही जगह ले जाते हैं…
मैं सत्य को ढूँढ रहा था,बहुत लोगों से बात की,बहुत किताबें पढ़ींतब पूरे एक वर्ष बाद शंकराचार्य द्वारा दी गयी सत्य की परिभाषा पढ़ने को मिली।शंकराचार्य ने कहा था कि“सत्य…