मनुष्य के दुख का कारण

आज का ज्ञान

मनुष्य के दुख का कारण
मनुष्य के दुख का सबसे बड़ा कारण है प्रार्थना…

प्रार्थना में इंसान माँग करता है..
जब आप मंदिर में दीपक जलाकर भगवान के आगे हाथ जोड़ते हैं तो बस यही कहते हैं कि हे प्रभु मेरे सारे कष्टों का निवारण करो.. मुझे धन धान्य से भरपूर करो.. कोई बच्चों के उज्जवल भविष्य की माँग करता है कोई व्यापार में बढ़ोतरी की माँग करता है तो कोई अपने दुश्मनों के अहित की माँग करता है।पढ़ने वाले बच्चे परीक्षा में पास होने के लिये प्रार्थना करते हैं।
भैया भगवान के पास ऐसा कुछ नहीं है जो वह आपको यह सब दे दे.. भगवान के पास पैसों को पेड़ नहीं है जो आपको मालामाल कर दे , भगवान के पास हथियार नहीं है जो वो आपके दुश्मनों को मार दे।भगवान के पास भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोई छड़ी भी नहीं है कि घुमाई और आपके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो जाये… भगवान परीक्षा में कापी भी नहीं जाँचता जो वह आपको पास कर दे।
यह सब आपको ही करना है लेकिन उसके लिये आपको मन की शान्ति और आत्मज्ञान की आवश्यकता होती है।

मन की शान्ति और आत्मज्ञान प्रार्थना में नहीं पूजा में है…. पूजा श्रद्धा है पूजा भाव है… पूजा इष्टदेव के समक्ष की जाती है जबकि प्रार्थना कहीं भी की जा सकती है, प्रार्थना तो मनुष्य से भी की जा सकती है।मनुष्य से की गयी प्रार्थना का फल आपके स्वाभिमान को ठेस पहुँचायेगा।

पूजा श्रद्धा भाव हैं, प्रभु का आदर हैं

प्रार्थना एक अर्ज़ी हैं, गुज़ारिश हैं

प्रार्थना का परिणाम ना मिलने पर मन अशांत रहता है और हम अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं और दोष भगवान को देते हैं
पूजा में परिणाम की आशा नहीं होती.. जहां आशा नहीं होती वहाँ मन विचलित नहीं होता, मन शान्त रहता है..
शांत चित से कार्य करने पर सफलता मिलती है …

पूजा कीजिये… प्रार्थना नहीं।

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आदि दूत

सनातन ही अनन्त है, सनातन ही अनादि है। सनातन से पहले कुछ नहीं था, सनातन के बाद कुछ नहीं रहेगा। आप लोग सोचेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि इसके पीछे कुछ कारण हैं। सनातन सृष्टि के सृजन की मूल है।सनातन कोई धर्म नहीं है

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