हे राम तुम उपमान हो हे राम तुम उपमेय हो
अज्ञान का हो ज्ञान तुम हो ध्यान तुम ही ध्येय हो
मेरी चराचर देह में हो रक्त का संचार तुम
उर के कोरों में बसे हो, हो मेरा संसार तुम।
छोड़ कर ये मोह माया हूँ गा रहा श्री राम धुन
दुनियाँ रहे अंजान मुझसे हो नहीँ अंजान तुम।
सब्र का ये बांध जब भी कभी गिरने लगे
ले सहारा राम का मन फूल फिर खिलने लगे।
प्रभु श्री राम जिनका नाम हम सभी बचपन से सुनते आयें है और हमारे मन में मर्यादा पुरुष की एक छवि आ जाती है ।जिसमें स्वतः ही श्री राम का नाम मस्तिष्क में आ जाता है मर्यादापुरषोतम श्री राम कलयुग में जीने का आधार है। भगवान श्री राम को याद करते ही शांत मुख, कमल सामान नयन , मन मोहनी मुस्कान, और एक ठहर से परिपूर्ण छवि सामने आ जाती है। हम बचपन में बच्चों में कृष्ण की छवि देखते है।लेकिन जब एक पुरुष की बात आती है तो हमे सब में एक राम चाहिये।
लेकिन स्वयं में रावण को बसाये फिरते हैं।
रगड़ रगड़ कर साबुन से तू,
तन का मैल छुड़ायेगा ।
मलिन भाव भरकर मन में तू
कैसे राम को पायेगा
रोम रोम में छुपी है कटुता,
कपट का तूने जाल बुना।
पाप की गठरी सिर पर तेरे,
झूँठ का तूने मार्ग चुना।
कर्म की गठरी लेकर एक दिन
द्वार प्रभु के जायेगा।
मलिन भाव भरकर मन में तू
कैसे राम को पायेगा।
राम कृपा से नर तन पाकर
तब धरती पर आया हैं।
जिव्हा को कर पावन अपनी
व्यर्थ में क्यों भरमाया है ।
धन दौलत सब रह जानी है,
कर्म साथ ले जायेगा।
मलिन भाव भरकर मन में तू ,
कैसे राम को पायेगा।
काम क्रोध और लोभ मोह में
हर पल खोया खोया है।
धन दौलत के जाल में उलझा,
आँख मूँदकर सोया है ।
पाई पाई करे इकट्ठा,
साथ नहीं कुछ जायेगा।
मलिन भाव भरकर मन में तू,
कैसे राम को पायेगा।
जग के झूठे बंधन में बंधकर ,
राम को क्यों बिसराता है ।
अंत समय हर रिश्ता नाता,
साथ चिता तक जाता है ।
झूठी मन की अभिलाषा है,
कुछ साथ तेरे ना जायेगा।
मलिन भाव भरकर मन में तू,
कैसे राम को पायेगा।
भोग विलास में रमा हुआ मन
और मन में विश्वास नहीं,
झूँठ मूठ की भक्ति करता
ईश्वर में तेरी आस नहीं
बैठा बैठा सोच किनारे
भवसागर पार ना जायेगा ।
मलिन भाव भरकर मन में तू
कैसे राम को पायेगा।
निष्फल उसकी भक्ति है मानव,
जिस मन में ईश्वर विश्वास नहीं,
राम नाम की लौ के बिन
दीपक में भी प्रकाश नहीं
झूँठे जतन किये जा जितने
मंजिल कभी ना तू पायेगा,
मलिन भाव भरकर मन में तू
कैसे राम को पायेगा ।
जब श्री राम ने भरी हुंकार
सुन दौड़े चले आये हनुमान
राम नाम की ऐसी महिमा
वेद पुराण करें गुणगान।
मानव की तो बात नहीं कुछ
पत्थर भी तर जाते हैं
जप ले राम नाम जीवन में
कष्ट सभी मिट जाते हैं
रिश्ते नाते जब छूटे जग में
राम ही एक सहारा है।
पत्थर बनी अहिल्या देवी,
चरण धूल से तारा है।
दो अक्षर का नाम राम पर
शक्ति जिसकी अपरमपार ।
तू भी जप ले नाम राम का
होगा तेरा भी बेड़ा पार है ।
बड़े भाग्य से नर तन पाकर
तू तब धरती पर आया हैं
जिव्हा को कर पावन अपनी
व्यर्थ में क्यों भरमाया है