सुनो…
बोलो..
ये ब्रह्म हत्या क्या होती है…
ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या..
अर्थात् …
आत्मा ही ब्रह्म है …
केवल किसी के शरीर को नष्ट कर देना ही हत्या नहीं है।….
अगर हमारे व्यवहार. वाणी.कार्यों या शब्दों से किसी की आत्मा को कष्ट पहुँचता है तो वह भी ब्रह्म हत्या कहलाता है..
गुरू से मिला ज्ञान हौसला बढ़ाता है, गुरू गिरते हुए को उठाता है, गुरू ग़लत राह से बचाता है, माता पिता से पहले गुरू के चरण स्पर्श करना हमारी संस्कृति की परम्परा है।
गुरु को ब्रह्म माना जाता है हमारे ऋषियों मुनियो ने गुरु को प्रभुत्य का स्वरूप, धरती पर गुरु को बताया गया है | माता के गर्भ से केवल एक मांस के पिंड का जन्म होता है | लेकिन गुरु का ज्ञान उसे मनुष्य बना देता है | गुरु का वह ज्ञान उसे चेतना देता है एवम कर्म बंधन से मुक्त कर प्रभम्य मे लाता है | अतः किसी भी प्रकार से गुरु का अपमान, शारीरिक प्रहार अथवा किसी भी प्रकार का कुकृत्य किया जाना ब्रह्म दोष माना जाता है, और जो ब्रह्म हत्या के दोष में आता है।
अंतरआत्मा की आवाज को अनसुना करना – सबसे बड़ा दोष का कारण वह है कि अपनी आत्मा की आवाज को अनसुना करना | आत्मा का जो ज्ञान है, आत्मा की जो आवाज है जो उसकी वाणी है उसे ब्रह्म की वाणी कहा जाता है | तो जो मनुष्य अपनी अंतरआत्मा की आवाज को अनसुना करता है उसे ब्रह्म हत्या का दोषी माना जाता है |
अक्सर लोग कह देते हैं कि अंजाने में हमसे भूल हो गयी हम ऐसा नहीं करना चाहते थे वैसा नहीं करना चाहते थे तो ये केवल भ्रमित करने वाले कथन हैं, कोई विक्षिप्त व्यक्ति है उससे तो भूल अंजाने में हो सकती है, लेकिन जो व्यक्ति पूर्ण विवेक में है सब कुछ जानता है सबकुछ समझता है वह अंजाने में कुछ नही करता उसे सब ज्ञात होता है कि वह क्या कर रहा है,अंजान कोई नहीं होता सब जानबूझकर ही किया जाता है। अंजान बनने को ढोंग किया जाता है ताकि उसके कृत्यों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाये।लोग नज़रअंदाज़ कर भी देते हैं लेकिन कुछ लोगों की आदत बन जाती है और वो बार बार वही कृत्य दोहराते रहते हैं जिससे किसी की आत्मा बहुत दुखी हो जाती है।
गलती हो गयी इतना कह देने मात्र से भूल सुधार नहीं होता अपितु उस भूल सुधार के लिये प्रायश्चित करना अनिवार्य होता है। व्यक्ति अगर प्रायश्चित नहीं करेगा तो वह भूल करने का आदि हो जायेगा।
पहली भूल है तो माफ़ी माँग लो
दूसरी बार भूल है तो माँग कर दंड के भागी बन जाओ ।
अगर तीसरी बार भूल होती है तो दंड स्वरूप प्रायश्चित करना ज़रूरी होता है
ब्रह्म हत्या के दोष से बचना सर्वोपरि है।
Bahut sundar likha hai